नई दिल्ली, अक्टूबर 2025 – दिल्ली के लोक नायक अस्पताल और मौलाना आज़ाद मेडिकल कॉलेज की विशेषज्ञ टीम ने चिकित्सा इतिहास में एक अनोखी उपलब्धि दर्ज की है। अस्पताल के डॉक्टरों ने एक ऐसे नवजात शिशु का सफल ऑपरेशन किया जो ‘तालु पर परजीवी जुड़वाँ’ (Palatal Parasitic Twin) के साथ जन्मा था। यह भारत में दर्ज हुआ अपनी तरह का पहला मामला है।
गर्भावस्था के दौरान अल्ट्रासाउंड जांच में शिशु के कठोर तालु (Hard Palate) से जुड़ी एक बड़ी गांठ का पता चला था। 36 सप्ताह की गर्भावस्था में शिशु का जन्म ऐच्छिक सिजेरियन सेक्शन द्वारा कराया गया। जन्म के तुरंत बाद शिशु को गंभीर वायुमार्ग अवरोध (Severe Airway Obstruction) का सामना करना पड़ा, जिसके चलते तत्काल इंटुबेशन और वेंटिलेशन की आवश्यकता पड़ी। करीब 15×12×8 सेंटीमीटर आकार की यह गांठ शिशु के सांस लेने और सिर की गति दोनों को प्रभावित कर रही थी।
इस अत्यंत जटिल शल्य-चिकित्सा का नेतृत्व बाल शल्य-चिकित्सा विभाग के प्रोफेसर डॉ. सुजॉय नियोगी ने किया। उनके साथ डॉ. दीपक गोयल, डॉ. दिव्या तोमर और डॉ. राकेश ऑपरेशन टीम का हिस्सा रहे। विभागाध्यक्ष प्रो. (डॉ.) सिम्मी के. रतन के कुशल नेतृत्व और प्रेरणा ने इस चुनौतीपूर्ण सर्जरी को सफलता तक पहुँचाने में अहम भूमिका निभाई। ऑपरेशन के दौरान और बाद की देखभाल में डॉ. प्रफुल कुमार, डॉ. चिरंजीव कुमार, डॉ. शीतल उप्रेती और डॉ. राघव नारंग ने महत्वपूर्ण योगदान दिया।
हिस्टोपैथोलॉजिकल जांच में पुष्टि हुई कि यह ‘फीटस इन फीटू’ (Fetus in Fetu) का मामला था — यानी ऐसा दुर्लभ चिकित्सीय विकार जिसमें एक भ्रूण के भीतर उसका अपूर्ण रूप से विकसित जुड़वाँ भ्रूण बढ़ता है। जांच में पाया गया कि गांठ में उपास्थि, आँतें, यकृत ऊतक और विकसित मस्तिष्क जैसी संरचनाएँ मौजूद थीं।
ऑपरेशन के बाद शिशु को कुछ समय तक गहन निगरानी और पोषण सहायता की आवश्यकता रही। डॉक्टरों की देखरेख में अब दो महीने की आयु में यह शिशु पूरी तरह स्वस्थ है और सामान्य रूप से बोतल से दूध पी रहा है।
लोक नायक अस्पताल के चिकित्सा अधीक्षक डॉ. बी. एल. चौधरी ने बाल शल्य-चिकित्सा विभाग की टीम को बधाई देते हुए कहा कि यह उपलब्धि हमारे चिकित्सकों की उत्कृष्ट विशेषज्ञता, टीम वर्क और मानवीय संवेदनशीलता का परिचायक है। उन्होंने कहा कि लोक नायक अस्पताल लगातार उन्नत चिकित्सा सेवाओं के नए मानक स्थापित कर रहा है।
यह मामला भारत में चिकित्सा विज्ञान के क्षेत्र में एक मील का पत्थर साबित हुआ है। इसने न केवल प्रसवपूर्व जांच, सर्जिकल सटीकता और बहु-विषयी टीमवर्क की महत्ता को उजागर किया है, बल्कि यह भी संदेश दिया है कि देश के हर अस्पताल में उन्नत बाल शल्य-चिकित्सा सुविधाएँ स्थापित की जानी चाहिए ताकि हर नवजात को जीवन का समान अवसर मिल सके।







