राष्ट्रीय (17/07/2023)
आत्म-स्मरण है वास्तविक धर्म—ओशो साझाFacebookTwitterEmailWhatsApp
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आत्म-स्मरण की साधना से व्यक्ति अपने आंतरिक स्वभाव का, असली स्वरूप का ज्ञान प्राप्त करता है। शांति, संतुलन, चेतना के संग एकात्मीयता, और अपनी आत्मा की अनुभूति होती है।_ आंतरिक स्थिरता, आनंद और स्व-बोध का अनुभव घटता है। आत्म स्मरण ही ध्यान है। अक्सर ध्यान के नाम पर जप करने वाले, पूजा-प्रार्थना और भक्ति के नाम पर आत्म-विस्मरण खोजते हैं। किसी काल्पनिक भगवान में अपने को डुबाकर, अपने को खोकर, भुलाकर वे बड़े सुख का अनुभव करते हैं। वह सुख एकदम झूठा है। ओशो के अनुसारः सेल्फ फार्गेटफुलनेस धर्म नहीं है। आत्मविस्मरण नहीं, धर्म है परिपूर्ण रूप से आत्म-स्मरण, सेल्फ-रिमेंबरिंग। स्वयं को भूल नहीं जाना है, स्वयं को उसकी परिपूर्णता में जान लेना है। स्वयं को उसकी समग्रता में पहचान लेना है। और ये दो बातें, ये दो दिशाएं बिलकुल ही विपरीत हैं। |
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