दिल्ली विश्वविद्यालय से संबद्ध कॉलेजों में आजकल यूजीसी के माध्यम से नैक ( NAAC ) की टीम का दौरा चल रहा है जिसमें यह पता लगाया जा रहा है कि कॉलेज / संस्थान ने पाँच साल में कितनी प्रगति की है । बता दें कि यूजीसी द्वारा हर पांच साल बाद कॉलेजों व विश्वविद्यालयों का नैक की टीम के माध्यम से दौरा कर पता लगाया जाता है कि यूजीसी व शिक्षा मंत्रालय द्वारा संचालित इन विश्वविद्यालयों /कॉलेजों में सरकार की योजनाओं का कितना अनुपालन किया जा रहा है । नैक की टीम जब कॉलेजों में दौरा करने आती है तो कॉलेज प्रिंसिपल कॉलेज के स्टाफ एसोसिएशन , एससी/एसटी व ओबीसी टीचर्स एसोसिएशन , कर्मचारी यूनियन , ओबीसी व एससी/एसटी सेल , दिव्यांग शिक्षकों से वे मुलाकात नहीं कराते और आरक्षित वर्गों के साथ होने वाली नियुक्तियों व पदोन्नतियों में भेदभाव , रोस्टर रजिस्टर में फेरबदल करना , प्रिंसिपल पदों पर आरक्षण न देना , आरक्षित वर्गों के छात्रों के प्रवेश संबंधी जानकारी , हर साल इन वर्गों के छात्रों की सीटें खाली रहना , शिक्षकों और कर्मचारियों के पदों का बैकलॉग , शिक्षकों के साथ जातीय आधार पर होने वाला भेदभाव को लेकर उनके साथ बैठक भी नहीं कराते हैं और न ही एससी/एसटी , ओबीसी व दिव्यांग शिक्षकों के साथ की गई भेदभावपूर्ण नीति को नैक टीम के समक्ष प्रस्तुत करने दिया जाता । फोरम ऑफ एकेडेमिक्स फॉर सोशल जस्टिस ने यूजीसी के चेयरमैन को एक पत्र लिखा है जिसमें उन्होंने मांग की है कि कॉलेजों/संस्थानों / विश्वविद्यालयों में भेजी जा रही नैक टीम में आरक्षित वर्गों के किसी सीनियर प्रोफेसर को ऑब्जर्वर के रूप में भेजा जाए ताकि वह एससी/एसटी , ओबीसी व पीडब्ल्यूडी के शिक्षकों के साथ कैसा व्यवहार होता है तथा कॉलेज में एससी/एसटी , ओबीसी सेल काम कर रहे हैं या नहीं पता लगा सके ? फोरम ऑफ एकेडेमिक्स फॉर सोशल जस्टिस (शिक्षक संगठन ) के चेयरमैन डॉ. हंसराज सुमन ने यूजीसी चेयरमैन प्रोफेसर एम .जगदीश कुमार को एक प्रस्ताव भेजा है, जिसमें फोरम की ओर से मांग की गई है कि किसी भी विश्वविद्यालय /कॉलेज /संस्थान में यूजीसी द्वारा नैक की टीम को भेजा जाए तो उस टीम में एससी/एसटी , ओबीसी के सीनियर प्रोफेसर को ऑब्जर्वर के रूप में विश्वविद्यालय /कॉलेज के प्रोफेसर को नैक टीम में रखा जाए । उन्होंने यह भी मांग की है कि नैक सदस्यों द्वारा जब विश्वविद्यालय/कॉलेज /संस्थान की रिपोर्ट तैयार किया जाए तो इस तथ्य पर जरूर ध्यान देना चाहिए कि संस्थान की ओर से क्या आरक्षित वर्गों के शिक्षकों /कर्मचारियों व छात्रों के लिए सुविधाएं मुहैया कराई गई हैं, यदि नहीं तो उसकी रिपोर्ट यूजीसी / शिक्षा मंत्रालय को करें तथा नैक में उसे किसी तरह का कोई ग्रेड नहीं दिया जाए । साथ ही नैक की उस रिपोर्ट को यूजीसी के अलावा शिक्षा मंत्रालय , एससी/एसटी कमीशन , पिछड़ा वर्ग आयोग व एससी/एसटी के कल्याणार्थ संसदीय समिति को भी भेजी जाए ताकि उस संस्थान /कॉलेज के विषय में लोगों तक जानकारी पहुंचे । इसके अतिरिक्त डॉ. सुमन ने इस बात पर भी जोर दिया कि नैक टीम की रिपोर्ट को प्रिंट मीडिया व इलेक्ट्रॉनिक मीडिया के समक्ष भी प्रस्तुत की जाए , जिससे यह पता चल सके कि संस्थान की प्रगति , उपलब्धि व किन- किन संसाधनों की कमी पाई गई है तथा एससी/एसटी , ओबीसी व दिव्यांग शिक्षकों /कर्मचारियों व छात्रों के प्रति कैसा व्यवहार किया जाता है ? डॉ. हंसराज सुमन ने बताया है कि नैक की टीम अपने दौरे के दौरान कॉलेज की कमियों को बताते है कि आपके कॉलेज में छात्र / छात्राओं का हॉस्टल नहीं है , छात्रों के लिए खेल का मैदान नहीं है और न ही छात्रों के कार्यक्रम करने के लिए कोई ऑडोटोरियम , छात्रों के पास टैब आदि भी नहीं है , पुस्तकालय में अच्छी पुस्तकों का अभाव , साफ -सफाई आदि से संबंधित नैक टीम प्रिंसिपल को उसके कॉलेज की कमियों को बताती है व सुझाव देकर चली जाती है। डॉ. सुमन का कहना है कि नैक टीम ने कॉलेज की जिन कमियों को बताया तथा सुझाव दिए यदि यही नैक टीम यूजीसी व शिक्षा मंत्रालय को अपनी रिपोर्ट सौंपे और निर्देश दे कि उस कॉलेज को अपनी बिल्डिंग , खेल का मैदान , ऑडोटोरियम , हॉस्टल आदि की बहुत आवश्यकता है । उनका कहना है कि उसके बाद शिक्षा मंत्रालय व केंद्र सरकार की जिम्मेदारी बनती है कि वह उस कॉलेज / संस्थान की उस कमी को दूर करें । साथ ही कॉलेज / संस्थान में जिन संसाधनों की कमी पाई गई है उसे जल्द से जल्द दूर किया जाए तभी कॉलेज शिक्षा के क्षेत्र में बेहतर प्रदर्शन कर पाएगा अन्यथा पाँच साल बाद वही स्थिति मिलेगी । सरकार की जिम्मेदारी बनती है कि वह संबंधित कॉलेज की कमियों को दूर करें तभी छात्र बेहतर शिक्षा अर्जित कर पायेंगे । प्रिंसिपल नहीं देते पूरी जानकारी -- डॉ. सुमन ने यह भी बताया है कि यूजीसी द्वारा भेजी गई नैक की टीम को प्रिंसिपल द्वारा शिक्षकों /कर्मचारियों के जातीय भेदभाव संबंधी गलत आंकड़े दिए जाते है , कॉलेजों ने आज तक एससी/एसटी ओबीसी कोटे का बैकलॉग पूरा नहीं किया है , कर्मचारियों की नियुक्ति व पदोन्नति नहीं की जा रही है , प्रिंसिपल पदों पर आरक्षण नहीं दिया जा रहा है , आरक्षण व रोस्टर को लेकर विश्वविद्यालय द्वारा बनाई गई प्रोफेसर काले कमेटी की रिपोर्ट को आज तक लागू नहीं किया गया , बहुत से कॉलेजों ने ओबीसी सेकेंड ट्रांच के पदों को नहीं भरा है , कर्मचारियों के ओबीसी एक्सपेंशन के पदों के विज्ञापन न निकालना आदि की जानकारी नहीं दी जाती। उन्होंने यह भी बताया है कि प्रिंसिपल एससी/एसटी , ओबीसी व दिव्यांग शिक्षकों व कर्मचारियों द्वारा प्रस्तुत की गई रिपोर्ट को नैक टीम को नहीं दी जाती । उनका कहना है कि जब तक कॉलेज प्रिंसिपल आरक्षित वर्गो के विषय में सही जानकारी नहीं दे देते कॉलेज को किसी भी तरह का ग्रेड नहीं दिया जाए और उस संस्थान /कॉलेज की रिपोर्ट तैयार कर मीडिया में सार्वजनिक करें ।

डॉ. हंसराज सुमन
चेयरमैन — फोरम ऑफ एकेडेमिक्स फॉर सोशल जस्टिस

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